“शिक्षा का बाजार: आउटलुक के बहाने”- रमेश ठाकुर

‘आउटलुक’ ने देश के नामचीन शिक्षकों को अपनी पत्रिका का चेहरा बनाया है। देखकर अच्छा लगा। यह बहुत अच्छी बात है। अच्छा शिक्षक होना और भी अच्छी बात है। ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि किसी पत्रिका ने शिक्षकों को अपनी पत्रिका का चेहरा बनाया हो।
पत्रिका ने जिन शिक्षकों को अपना चेहरा बनाया है, वे सभी शिक्षक कोचिंग चलाते हैं। बड़े यूटूबर हैं। कोचिंग और यूट्यूब से खूब पैसा कमाते हैं। केवल पटना वाले खान सर के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने अपने यूटूब चैनल को मोनेटाइज नहीं किया है। ताकि अभ्यर्थी बिना किसी विज्ञापन बाधा के वीडियो देख सके। ऐसा है तो यह अपने आप में एक क्रांतिकारी बात है। सुनने में यह भी आया है कि उनके कोचिंग की फीस भी बहुत कम है। गणित की फीस है मात्र ₹200, इतिहास की ₹200, रेलव परीक्षा की ₹499, भारतीय राज्यव्यवस्था की ₹199, नक्शा की ₹200 और भूगोल की फीस ₹200 है। इससे पता चलता है कि शिक्षा को लेकर खान सर कितने सचेत और संवेदनशील हैं। ‘सर्व शिक्षा अभियान’ का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है? उनका फीस स्ट्रक्चर इस लिंक पर देखा जा सकता है- https://topcoachingreview-com.translate.goog/khan-sir-coaching-review-fee-structure/?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc,sc

‘दृष्टि’ वाले विकास दिव्यकीर्ति अद्भुत शिक्षक हैं! अध्यापक के मामले में उनका विकल्प ढूंढना मुश्किल है। खान सर जहाँ अपने ठेठपन और फनी स्टाइल में पढ़ाने के कारण लोकप्रिय हैं, वहीं विकास दिव्यकीर्ति अपने गहन बौध्दिक चिंतन, अद्भुत शिक्षण कौशल के कारण लोकप्रिय हैं। लेकिन साधारण वर्ग का कोई भी छात्र उनके संस्थान में जाकर पढ़ाई नहीं कर सकता। क्योंकि ‘दृष्टि’ की फीस लाखों में है। उनके यहाँ GS (Prelims+Mains) की फीस ₹1,30,000 है। Csat की फीस ₹25,000 और History Optional की फीस ₹50,000 है। अब ऐसे में जो बाप बीस-पच्चीस हजार रुपये खर्च करके अपने बच्चे को दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन नहीं करा पाते, वे लाखों की फीस कहाँ से देंगे? यूट्यूब पर उनकी कुछ वीडियो जरूर हैं, पर ऐड फ्री नहीं हैं। वे सभी इनकम के लिहाज से ही अपलोडेड हैं। वहाँ जो वीडियोज अपलोड हैं, उसे देखकर कोई आईएएस पीसीएस की परीक्षा पास नहीं कर सकता है। क्लास की वीडियो के लिए सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता है। बेसिक जानकारी की वीडियोज ही यूट्यूब पर अपलोड हैं। ‘दृष्टि’ का फीस स्ट्रक्चर आप इस लिंक पर देख सकते हैं-https://www.drishtiias.com/classroom-program/delhi-coaching-centre/fee-structure

अलख पांडेय फिजिक्स वाले का फीस स्ट्रक्चर दो कैटिगरी का है। स्कूली बच्चों की फीस तो सामान्य है। लेकिन JEE/NEET की फीस ₹49,000 सालाना है। दो साल की फीस ₹89,000 है। यह कोई सामान्य फीस नहीं है। आप इनका फीस स्ट्रक्चर इस लिंक पर देख सकते हैं-https://www.google.com/url?sa=t&source=web&rct=j&url=https://blog.shikshacoach.com/physics-wallah/&ved=2ahUKEwjv-cjej4D7AhWvyHMBHVYYBIYQFnoECAsQAQ&usg=AOvVaw2CvD3388jDmXPfP439dDNT

‘पार्थ’ वाले अवध ओझा इतिहास पढ़ाते हैं। ‘दृष्टि’ और अलख पांडेय की तुलना में उनकी फीस थोड़ी कम है। उनके यहाँ 18 महीने की फीस ₹35,000, 12 महीने की ₹30,000 और 6 महीने की फीस ₹25,000 है। यह भी कम नहीं है। केवल इतिहास विषय के लिए यह फीस बहुत ज्यादा है। उनका फीस स्ट्रक्चर भी आप इस लिंक पर देख सकते हैं-https://www.google.com/url?sa=t&source=web&rct=j&url=https://www.avadhojha.com/&ved=2ahUKEwiOuI6Zj4D7AhWn7HMBHTaHBb8QFnoECAsQAQ&usg=AOvVaw1wAGTOK5anByf454NMEiPf

फीस के लिहाज से कोई शिक्षक मेरी नजर में आदर्श हैं तो वे हैं पटना वाले ‘सुपर-30’ के आनंद सर। उनके जैसा अध्यापक मैंने बहुत कम देखा है। शिक्षण कौशल के मामले में उपरोक्त किसी भी शिक्षक से वे कम नहीं हैं। और नेचर के मामले में तो वे इन सबसे ऊपर हैं। आनंद कुमार एक क्रांति का नाम है। एक ऐसी क्रांति जिसका हिस्सा बनकर न जाने कितने भूखे-नंगों की जिंदगी बन गई। उनके जैसा कोई नहीं। उनके बाद यदि किसी का नाम आता भी है तो मैं खान सर का नाम पूरे गौरव के साथ लूँगा।
कौन कितना बड़ा और अच्छा शिक्षक है, यह उसकी सामाजिक उपयोगिता से सिद्ध होना चाहिए। गौतम अडानी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में दूसरे और भारत के अमीर व्यक्तियों की सूची में पहले स्थान पर हैं। पर इससे भारतीय जनता को क्या लाभ? वे हर चीज की कीमत बढ़ाकर जनता को लूटने में लगे हुए हैं। उनसे बेहतर तो HCL के फाउंडर शिव नाडर हैं, जो 1161 करोड़ रुपये दान कर दानवीरों की सूची में पहले स्थान पर हैं। विप्रो के फाउंडर अजीम प्रेमजी दूसरे और रिलायंस के फाउंडर मुकेश अंबानी तीसरे स्थान पर हैं। हमारे आदर्श शिव नाडर, अजीम प्रेमजी और मुकेश अंबानी ही हो सकते हैं, अडानी नहीं। शिक्षा, शिक्षण और शिक्षक के संबंध में भी यही दृष्टिकोण होना चाहिए। विद्वता के साथ-साथ उदारता भी शिक्षकों में होनी चाहिए। अन्यथा व्यापारी अडानी और व्यापारी शिक्षकों में कोई फर्क नहीं रहेगा। 
अत्यधिक फीस वृद्धि को लेकर सामाजिक नजरिए को समझना भी जरूरी है। इसका दोष केवल कोचिंग संस्थानों को देना ठीक नहीं है। एक उदाहरण देता हूँ। वर्ष 2017 की बात है। मेरे पास तीन लड़की नेट जेआरएफ की क्लास के लिए आई। तीनों किसी दूसरे कोचिंग संस्थान में तीस-तीस हजार रुपए फंसा चुकी थी। उस समय नेट जेआरएफ की फीस तीस हजार रुपये से ज्यादा थी। पटेल चेस्ट पर तीस हजार तो जीटीबी नगर पर चालीस-पचास हजार रुपये तक की फीस थी। जब उन लड़कियों को मैंने अपनी फीस बताई तो उसमें से एक लड़की दूसरी लड़की से कहती हैं- “यार! उसने तीस हजार में कुछ नहीं पढ़ाया तो यह 10 हजार में क्या पढ़ाएगा?” 10 हजार सुनकर तीनों वापस चली गई। मैं काफी दिनों तक परेशान रहा। फीस को लेकर मन में द्वंद्व चलता रहा। पर घोर प्रतिस्पर्धा के बावजूद भी मैंने फीस में बढ़ोतरी नहीं की। कम फीस रखने का नुकसान भी मुझे उठाना पड़ा। क्लास को लोगों ने ‘क्लास’ में बदल दिया। यानी ज्यादा फीस लेने वाले कोचिंग संस्थान में हाई प्रोफाइल वर्ग के विद्यार्थी पढ़ने लगे और मेरी क्लास में केवल दीनहीन विद्यार्थी रह गए। थोड़ा अजीब लगा, पर मैं उन बच्चों के साथ खड़ा रहा जो शिक्षा के दरबाजे पर खड़ा होकर अंदर आने का इंतजार कर रहा था।
फीस का मसला कोचिंग वालों से ज्यादा हमारा है। वे सिर्फ हमारी सोच को भुनाने में लगे हुए हैं। प्राइवेट स्कूलों में भी यही होता है। अधिक फीस लेने वाले स्कूलों को हम अच्छा मानते हैं और कम फीस लेने वाले स्कूलों को खराब और पिछड़ा। इसलिए केवल कोचिंग संस्थान वालों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उसे हमने व्यापारी बनाया है। जब हम शिक्षण को महत्व देने लगेंगे तब फीस का यह तिलस्म भी टूटेगा। पर वर्ग और जाति आधारित हमारे समाज में ऐसा होगा, इसकी संभावना बहुत कम है।

रमेश ठाकुर

असिस्टेंट प्रोफेसर

हिंदी विभाग, हिन्दू कॉलेज

दिल्ली विश्वविद्यालय,

दिल्लीमो. 8448971626

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